बॉलीवुड और मनोरंजन

एक्टर Atul Parchure का निधन, 57 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

मराठी फिल्म इंडस्ट्री से लेकर बॉलीवुड फिल्मों में काम करने वाले पॉपुलर एक्टर अतुल परचुरे (Atul Parchure) का निधन हो गया है. अतुल परचुरे ने 57 साल की उम्र में आखिरी सांस ली. अतुल परचुरे ने अपने करियर में बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान से लेकर शाहरुख खान और अजय देवगन संग फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा अतुल परचुरे ने मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो में काम करने के बाद घर-घर में पहचान बनाई थी. अतुल परचुरे के निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर है और उनके फैंस से लेकर सेलिब्रिटी उनके निधन पर दुख जता रहे हैं.

कैंसर से जूझ रहे थे अतुल परचुरे

एंटरटेनमेंट (Entertainment News) इंडस्ट्री से सोमवार की शाम को दुखद खबर सामने आई. लोगों को हंसाने वाले एक्टर और कॉमेडियन अतुल परचुरे लोगों को रुलाकर दुनिया से चले गए. 57 साल के अतुल परचुरे लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे. हालांकि, कैंसर को कड़ी टक्कर देने वाले एक्टर ने फिर से काम शुरू कर दिया था. लेकिन बीते कुछ समय से उनकी सेहत गिरती जा रही थी. आखिरकार अतुल परचुरे ने 14 फरवरी को दुनिया को अलविदा कह दिया. जिसने भी इस खबर को सुना उसे सदमा लगा है. वहीं, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने अतुल परचुरे के निधन पर शोक व्यक्त किया है.

ऐसा रहा अतुल परचुरे का एक्टिंग करियर

अतुल परचुरे की फैमिली में उनकी मां, पत्नी और बेटी है. उनके निधन से परिवार के लोगों का बुरा हाल है. अतुल परचुरे के फैंस सोशल मीडिया के जरिए उन्हें याद कर रहे हैं. अतुल परचुरे के करियर की बात करें तो उन्होंने मराठी सिनेमा के अलावा हिंदी फिल्मों और टीवी में काफी काम किया है. अतुल परचुरे को ‘पार्टनर’, ‘ऑल दे बेस्ट’, ‘कलयुग’, ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’, ‘खिचड़ी’ जैसी फिल्मों में देखा गया है. इसके अलावा अतुल परचुरे ने कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो अपनी कॉमिक टाइमिंग से लोगों का जमकर हंसाया है. एक्टर के हर अंदाज को उनके फैंस खूब पसंद करते थे.

बॉलीवुड, हॉलीवुड, साउथ, भोजपुरी और टीवी जगत की ताजा खबरों के लिए यहां क्लिक करें…

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button