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नेटफ्लिक्स पर अवेलेबल है एक ऐसी सीरीज जो घुमा देगी आपका दिमाग, एक बार जरूर देखें

Thriller Series Dark on OTT: ओटीटी पर तमाम ऐसे कंटेंट हैं जिन्हें आप अपने अलग-अलग मूड के हिसाब से देख सकते हैं. किसी को रोमांटिक ड्रामा पसंद होता है तो कोई सस्पेंस-थ्रिलर ड्रामा पसंद करते हैं. अलग-अलग ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे ढेरों सीरीज या फिल्में मिल जाएंगी लेकिन हम आपको एक ऐसी सीरीज के बारे में बताएंगे जिसे देखकर आपका दिमाग हिल जाएगा. उसे देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है?

जी हां, हम किसी हिंदी सीरीज की बात नहीं कर रहे बल्कि ये सीरीज इंग्लिश में मौजूद है. नेटफ्लिक्स की ये सीरीज आप एक बार में समझ ही नहीं पाएंगे. अगर समझ गए तो भी बार-बार देखना पसंद करेंगे. इस सीरीज में कई ऐसे ट्विस्ट हैं जो आपको हैरान कर सकते हैं और उस सीरीज का नाम ‘डार्क’ है.

नेटफ्लिक्स की सबसे खतरनाक सीरीज है ‘डार्क’

साल 2017 में टीवी सीरीज ‘डार्क’ आई थी जो नेटफ्लिक्स पर रिलीज की गई. इसे जर्मन भाषा में रिलीज किया गया था जिसे बैरन बो ओडर ने डायरेक्ट किया था. इस सीरीज में जर्मनी के एक काल्पनिक शहर विंडेन में रहने वाले कुछ बेकार लोगों की कहानी को दिखाया गया है.

सीरीज में एक बच्चा विचित्र रूप से गायब होता है और उस गुत्थी को सुलझाने में सभी लोग लग जाते हैं. इस सीरीज को देखते समय इसे समझने के लिए आपको दिमाग लगाना पड़ेगा.

ऐसी सीरीज शायद ही आपने देखी होगी. इस सीरीज के तीन सीजन हैं और सभी नेटफ्लिक्स पर अवेलेबल हैं. सीरीज में एक कमी है कि ये बहुत स्लो है लेकिन अगर एक बार आपने इसे समझकर देख लिया तो अंत तक छोड़ नहीं पाएंगे. फिल्म की कहानी दर्शकों को बांधने में कामयाब होती है और अंत में आप इस सीरीज की तारीफ भी करेंगे.

कैसा है ‘डार्क’ का टाइम फ्रेम?

‘डार्क’ के तीनो सीजन में आपको 18वीं सदी से 2050 तक की कहानी दिखाई जाएगी जो काल्पनिक कहानियों पर चल रही होती हैं. इस सीरीज का पहला सीजन जब आप देखेंगे तो बाकी दो सीजन भी देखने पर मजबूर हो जाएंगे. इसलिए इस सीरीज को दिमाग घुमा देने वाली सीरीज बता रहे हैं क्योंकि इसकी कहानी को आपने एक सेकेंड के भी मिस किया तो समझना मुश्किल हो जाएगा.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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