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वड़ापाव गर्ल ने साई के मसाज ऑफर को बताया फ्लर्ट, शिवांगी खेडकर बोलीं- ‘सोच बदलना जरूरी’

बिग बॉस ओटीटी 3 (Bigg Boss OTT 3) में इन दिनों जबरदस्त हंगामा देखने को मिल रहा है। शो के बीते एपिसोड में लव कटारिया और रैपर नेजी के बीच तगड़ी फाइट हुई, जिसके अरमान मलिक और रणवीर शौरे ने खूब मजे लिए। वहीं के पिछले एपिसोड में यह भी दिखाया गया कि चंद्रिका (Chandrika Dixit) के हाथ में दर्द हो रहा था, जिसको देखकर साई केतन राव (Sai Ketan Rao) ने उन्हें मसाज ऑफर की। हालांकि चंद्रिका ने साई के इस ऑफर का गलत मतलब निकाला। सना मकबूल से इस बात के बारे में चर्चा करते हुए वड़ापाव गर्ल ने कहा, ‘साई कह रहा था कि आओ मैं मसाज कर देता हूं, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैंने कहा कि तुम इसके लायक नहीं हो भाई। मेरा पति बैठा है बाहर’ वहीं चंद्रिका के इस बयान पर साई केतन राव की दोस्त शिवांगी खेडकर (Shivani Khedkar) का गुस्सा फूटा है।

शिवांगी खेडकर का फूटा चंद्रिका दीक्षित पर गुस्सा

बिग बॉस ओटीटी 3 के प्रोमो वीडियो के सामने आने के बाद शिवांगी खेडकर ने एक लंबी-चौड़ी पोस्ट लिखकर चंद्रिका दीक्षित को लताड़ लगाई। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “मैं इस बारे में बात करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती कि बिग बॉस के अंदर क्या होता है क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि वो लोग जिस स्थिति में हैं, वह बाहरी दुनिया से बहुत अलग है। लेकिन मैं साई केतन राव के बारे में गलत तरीके से लिखे गए आर्टिकल्स को देखकर काफी दुखी हूं। मुझे लगता है कि उनकी पीआर टीम के पास उनके लिए लिखने के लिए कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने इसे चुना क्योंकि शायद इस वजह से ही उनके कलाकार किसी तरह सुर्खियों में आ जाएं।”

सोच बदलने की जरूरत: शिवांगी खेडकर

शिवांगी खेडकर ने चंद्रिका पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए आगे कहा, “दुख की बात है कि मसाज देने की बात को फ्लर्ट के तौर पर लिया गया। लेकिन साई ने केवल चंद्रिका को तकलीफ में देखा और अच्छा इंसान होने के नाते उनकी मदद करनी चाही। सोच बदलना जरूरी है। यह केवल साई के लिए ही नहीं बल्कि घर में मौजूद सभी पुरुषों के लिए मैं यह कह रही हूं। मुझे नहीं लगता कि यह उस तरह के लोग हैं, जिस तरह से पीआर टीम उन्हें दिखाने की कोशिश कर रही हैं।”

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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