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पैसे बचाने के लिए पटौदी पैलेस में पेंट नहीं कराते सैफ अली खान, मां शर्मिला रखती हैं सारा हिसाब

Saif Ali Khan Manages Pataudi Palace: बॉलीवुड में कुछ सेलेब्स के घर राजमहल से कम नहीं है. इस लिस्ट में सैफ अली खान का नाम भी आता है जो पटौदी पैलेस के वारिस हैं. सैफ अली खान का ये आलीशान बंगला गुरुग्राम में स्थित है. हाल ही में एक्टर की बहन सोहा अली खान ने खुलासा किया है कि सैफ शाही विरासत पटौदी पैलेस को कम खर्च में कैसे मेंटेन करते हैं.

हाउसिंग डॉट कॉम यूट्यूब चैनल पर साइरस ब्रोचा के साथ एक इंटरव्यू में सोहा अली खान ने कहा-‘मेरी मां हिसाब-किताब लेकर बैठती हैं, वो हर रोज के खर्चों और हर महीने के खर्च जानती है. उदाहरण के लिए, हम पटौदी को व्हाइट वॉश करते हैं, इसे पेंट नहीं किया जाता क्योंकि ये बहुत कम महंगा है.’

‘मेरा भाई एक राजकुमार की तरह पैदा हुआ…’
सोहा आगे कहती हैं- ‘हमने काफी समय से कुछ भी नया नहीं खरीदा है. ये उस जगह की वास्तुकला है जो सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव है. ये चीजें नहीं हैं, यह ऑब्जेक्ट नहीं हैं. मेरा जन्म 1970 में प्रिवी पर्स और शाही अचीवमेंट को खत्म किए जाने के बाद हुआ था. मेरा भाई एक राजकुमार की तरह पैदा हुआ था, क्योंकि वह 1970 में पैदा हुआ था.’ 

‘अचीवमेंट के साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां और बिल आते हैं…’
सोहा फिर कहती हैं- ‘अचीवमेंट के साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां और बिल आते हैं. मेरी दादी बेगम थीं भोपाल और मेरे दादाजी पटौदी के नवाब थे. वो उससे कई सालों तक प्यार करते थे लेकिन उसे उनसे शादी करने की इजाजत नहीं थी. सोहा ने बताया कि जब उनके दादा पटौदी पैलेस बनवा रहे थे तो उनके पैसे तक खत्म हो गए थे. इसकी वजह से महल के अंदर  संगमरमर के बजाय ज्यादा कालीन रखे गए थे.’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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